लुणियासर का इतिहासलुणियासर की स्थापना :- विक्रम सवंत 1687, चैत्र सुदी 3 , रविवार को राव बल्लु के हाथों हुआ।
लुणियासर के जागीदार श्री करणजी चारण मिसण को लुणियासर की जगिदारी मिली।
लुणियासर के जागीदार चारण मिसण की कुलदेवी श्री चालाकनेशी माता है। जो गाँव से दक्षिण में नेनावा (ग़ुज.) के रास्ते पर आया हुआ है। कुलदेवता श्री खेत्रपालजी का मंदिर गाँव से पूर्व की तरफ आया हुआ है।
गाँव कुआ (Well) गाँव के पास आया हुआ है। यह कुआ (Well) बहुत पुराना है, इसका निर्माण राजा सागरजी ने करवाया था।
गाँव के पास श्री शंकर भगवान का मंदिर विरोल और नेनावा दोनों रास्तों के मध्य आया हुआ है।
गाँव में श्री हनुमानजी का मंदिर गाँव के मुख्य द्धार पर आया हुआ है। श्री खेत्रपाल जी के मंदिर के पास एक पुराना गढ़ भी था।
गाँव में कुल लगभग 500 घरों की आबादी है। गाँव का क्षैत्रफल(आबादी , गोचर,खातेदारी ) 10,200 सरकारी विगा है।
लुणियासर गाँव मै पुरानी डाक व्यवस्था नेनावा (गुज.) से लुणियासर होते हुए सांचौर डाक विभाग में डाक दिया करता था। इस गाँव में सरकारी डाक व्यवस्था पुरानी थी अब गाँव में BA पोस्ट चल रही है।
लुणियासर में, पुराना अहमदाबाद हैदराबाद सिंध के रास्ते पर आया हुआ। यहाँ पर टेलीफ़ोन लाइन थी जो भारत आजाद होने के बाद हटाई गई।
गाँव में चारण, चौधरी (आँजना,पटेल ) देवासी, कुम्हार, घांची, गोस्वामी, नाई, वजीर(दरोगा), सोनी, गर्ग, मेघवाल, भील, लुहार, वागरी, हरिजन आदि निवास करते है।
नोंट :- उपरोक्त जानकारी हमें श्री जीवदानजी चारण, श्री मनोहरदानजी चारण , श्री मंगलदानजी चारण ने दी। हम इनके बहुत बहुत आभारी है।